‘सरजमीन’ रिव्यू: जब जंग सरहद पर नहीं, घर के अंदर हो
25 जुलाई को जियो सिनेमा पर रिलीज़ हुई ‘सरजमीन’ एक भावनात्मक थ्रिलर है, जो देशभक्ति और पारिवारिक रिश्तों के टकराव को बेहद गहराई से उकेरती है। पृथ्वीराज सुकुमारन, काजोल और इब्राहिम अली खान जैसे दमदार कलाकारों से सजी इस फिल्म को कायोज ईरानी ने निर्देशन दिया है।
कहानी की जड़ में है दर्द और द्वंद्व
फिल्म की कहानी कर्नल विजय मेनन (पृथ्वीराज सुकुमारन) और उनकी पत्नी मेहर (काजोल) के इर्द-गिर्द घूमती है, जिनका बेटा हरमन (इब्राहिम अली खान) अचानक एक ऐसे मोड़ पर आ जाता है, जहां वह देश के लिए खतरा बन सकता है। एक मिशन के दौरान सामने आया यह सच परिवार को अंदर तक तोड़ देता है।
अभिनय है फिल्म की असली ताकत
काजोल ने एक मां की चुप और गहरी तकलीफ को बहुत ही सटीकता से पर्दे पर उतारा है। वहीं पृथ्वीराज एक सख्त लेकिन टूटे हुए पिता के किरदार में असरदार नजर आते हैं।
सबसे बड़ा सरप्राइज़ हैं इब्राहिम अली खान। उन्होंने हरमन को सिर्फ एक विलेन की तरह नहीं, बल्कि एक उलझे हुए इंसान की तरह निभाया है, जिसकी बेचैनी और भीतर का तूफान दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है। उनके अभिनय में वो तीखापन है जो उन्हें तुरंत एक गंभीर कलाकार की श्रेणी में ले आता है।
फिल्म की प्रस्तुति और संदेश
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी खूबसूरत और भावनात्मक रूप से प्रभावी है। ‘सरजमीन’ कोई मेलोड्रामा नहीं है, बल्कि एक कड़वा सच दिखाती है — जब दुश्मन सीमा पार नहीं, बल्कि अपने ही घर में हो।
अंतिम राय
‘सरजमीन’ एक सोचने पर मजबूर करने वाली फिल्म है, जो दिल में उतर जाती है। यह केवल एक फिल्म नहीं, एक अनुभव है — और खासकर इब्राहिम अली खान के लिए यह एक यादगार लॉन्च साबित हो सकती है।
रेटिंग: 🌟🌟🌟✨ (3.5/5)