चंडीगढ़, 30 जुलाई 2025:
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा राज्य में पशु चिकित्सा सेवाओं की अव्यवस्थित स्थिति पर संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार और राज्य सरकार को सख्त निर्देश जारी किए हैं। पशु चिकित्सक महासंघ द्वारा दायर CWP-PIL-39-2019 की सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश श्री शील नागु और न्यायमूर्ति संजीव बेरी की खंडपीठ ने यह आदेश पारित किया।
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अक्षय कुमार ने बताया कि राज्य भर में हजारों वेटरनरी लाइवस्टॉक डेवलपमेंट असिस्टेंट्स (VLDA) पशु अस्पतालों और डिस्पेंसरियों में कार्यरत हैं। किंतु, भारतीय पशु चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1984 की धारा 30(b) के अनुसार, ये डिप्लोमा धारक केवल प्राथमिक पशु चिकित्सा सेवाएं पशु चिकित्सक की देखरेख में ही प्रदान कर सकते हैं।
वास्तविकता में, एक पशु चिकित्सक को 30–40 किलोमीटर के दायरे में 4–5 डिस्पेंसरियों की जिम्मेदारी सौंपी जाती है, जिससे निरीक्षण असंभव हो जाता है। इस ढीले प्रशासनिक ढांचे के कारण झोलाछाप पशु चिकित्सा सेवाएं फलने-फूलने लगीं — जिनमें बिना प्रशिक्षण या निगरानी के टीकाकरण, बधियाकरण और अन्य उपचार किए जा रहे हैं। इससे न केवल पशुओं का जीवन खतरे में पड़ा है, बल्कि आमजन के स्वास्थ्य और राज्य की पशुधन अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए कि याचिकाकर्ता द्वारा 18.06.2018 को भेजे गए दो नोटिसों पर विचार कर 30 दिन के भीतर स्पष्ट और तर्कयुक्त आदेश पारित कर याचिकाकर्ता को सूचित करें। यह आदेश वर्षों से चली आ रही अनदेखी व्यवस्था में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।