स्वतंत्र भारत के सबसे विवादास्पद कालखंडों में से एक पर रोशनी डालने जा रहे एक महत्वपूर्ण कदम के तहत, दिल्ली सरकार अब आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (MISA) से संबंधित सभी संभावित दस्तावेजों को सार्वजनिक करने और उजागर करने जा रही है। यह एक विवादास्पद कानून था जिसका उपयोग 1975 से 1977 के आपातकाल के दौरान हजारों विपक्षी नेताओं और आंदोलनकारियों को बिना मुकदमे के जेल में डालने के लिए किया गया था।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, यह कदम भारत के राजनीतिक इतिहास के इस महत्वपूर्ण युग को संरक्षित करने और जनसामान्य के लिए सुलभ बनाने की दिशा में उठाया गया है। MISA से संबंधित सभी फाइलें गृह विभाग को भेजी जाएंगी, जहां से उनकी स्वीकृति के बाद उन्हें सार्वजनिक किया जाएगा। दस्तावेजों के सार्वजनिक होने के बाद उन्हें डिजिटाइज़ किया जाएगा और इनसे प्राप्त ऐतिहासिक जानकारी को आम जनता के साथ साझा किया जाएगा।

MISA कानून 1971 में पारित हुआ था और यह आपातकाल के दौरान तानाशाही की रूपता का प्रतीक बन गया था, जिसके तहत जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे प्रमुख नेताओं को जेल में डाला गया था। बाद में शाह आयोग की रिपोर्ट में बताया गया कि इस दौरान 35,000 से अधिक लोगों को रोकथाम के तहत हिरासत में लिया गया था।
फाइलों को सार्वजनिक करने का यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब देश ने हाल ही में आपातकाल के लागू होने की 50वीं वर्षगांठ मनाई है। यह परियोजना उस समय की गिरफ्तारी, राज्य मशीनरी की भूमिका और पूरे घटनाक्रम के स्वरूप पर अमूल्य जानकारी प्रदान करेगी, जिससे पारदर्शिता और ऐतिहासिक उत्तरदायित्व को बल मिलेगा।
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