SIR पर चला विपक्ष का दांव उल्टा, तेजस्वी की किरकिरी और राहुल की रणनीति पर सवाल
बिहार में विपक्ष को लगा था कि SIR (Systematic Identification of Real Voters) को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाकर जनता का समर्थन मिल जाएगा। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव इसे लेकर खासे सक्रिय थे। लेकिन जैसे ही मतदाता सूची का ड्राफ्ट सामने आया, विपक्ष का नैरेटिव ढह गया।
तेजस्वी की जल्दबाज़ी और चुनाव आयोग का करारा जवाब
ड्राफ्ट लिस्ट आते ही तेजस्वी यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और आरोप लगाया कि उनका और उनकी पत्नी का नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया गया है। लेकिन चुनाव आयोग ने तुरंत स्पष्ट कर दिया कि दोनों नाम लिस्ट में मौजूद हैं। सोशल मीडिया पर तेजस्वी की जमकर आलोचना हुई, और विपक्ष की रणनीति कमजोर पड़ गई।
SC से भी नहीं मिला समर्थन, विपक्ष बैकफुट पर
इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने की कोशिश हुई, लेकिन वहां से भी विपक्ष को कोई ठोस राहत नहीं मिली। बिहार में न तो कोई बड़ी गड़बड़ी सामने आई और न ही वोटर डाटा में हेरफेर के सबूत मिले।
राहुल गांधी के सामने नई चुनौती: अब क्या होगा अगला कदम?
राहुल गांधी अब भी दावा कर रहे हैं कि उनके पास वोट चोरी के पुख्ता सबूत हैं, और चुनाव आयोग पर वे सवाल उठाते रहे हैं। लेकिन बार-बार चुनाव प्रणाली को निशाने पर लेने की यह रणनीति अब सवालों के घेरे में है, खासकर तब जब कांग्रेस खुद ईवीएम और SIR की शुरुआत कर चुकी है।
बिहार से राष्ट्रीय नैरेटिव बनाना मुश्किल
राहुल गांधी SIR के ज़रिए राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा मुद्दा खड़ा करना चाहते थे, लेकिन बिहार में यह कोशिश फ्लॉप शो बनकर रह गई। अब उनकी नजर पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के चुनावों पर है, लेकिन वहां भी हालात आसान नहीं हैं।
विपक्ष का पुराना फॉर्मूला फिर फेल
SIR से पहले भी विपक्ष नैरेटिव आधारित राजनीति करता आया है — चाहे वो आरक्षण खत्म करने की आशंका हो या संविधान बदलने की बात। लेकिन हर बार की तरह हकीकत और ज़मीन पर वोटर की समझदारी ने विपक्ष के दावों को झूठा साबित किया।