बिहार की सियासत में कांग्रेस का नया दांव: मुस्लिम वोटों पर नजर, आरजेडी की मुश्किलें बढ़ेंगी?
बिहार की राजनीति में कांग्रेस के हालिया कदम चर्चा का विषय बने हुए हैं। इमारत-ए-शरिया के मौलानाओं से मुलाकात और इमरान प्रतापगढ़ी जैसे नेताओं को मैदान में उतारने से यह सवाल उठ रहा है – क्या कांग्रेस अब मुस्लिम वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की रणनीति पर काम कर रही है?
अगर यह रणनीति सफल होती है तो महागठबंधन, खासकर आरजेडी के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है। कांग्रेस की सक्रियता से ओवैसी की AIMIM और तेजस्वी यादव की RJD—दोनों के वोट बैंक पर असर पड़ सकता है।
राहुल गांधी की पदयात्रा और बदली हुई रणनीति
राहुल गांधी 10 अगस्त से 26 अगस्त तक बिहार के 18 जिलों की पदयात्रा पर रहेंगे। इस दौरान वे ‘नौकरी दो, पलायन रोको’ जैसे जनसरोकार के मुद्दों पर जनता से जुड़ने की कोशिश करेंगे। इससे पहले बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम और नेताओं की इमारत-ए-शरिया से मुलाकात ने राजनीतिक गलियारों में हलचल बढ़ा दी है।
मुस्लिम वोट बैंक पर फोकस
करीब 18% मुस्लिम आबादी वाले बिहार में सीमांचल, मिथिलांचल और मगध क्षेत्र की 60 से ज्यादा सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। 2020 में AIMIM ने सीमांचल में पांच सीटें जीतकर RJD के परंपरागत MY समीकरण को झटका दिया था। अब कांग्रेस अगर इस वोट बैंक को साधने में कामयाब होती है, तो वह न सिर्फ गठबंधन में अपनी ताकत बढ़ा सकती है, बल्कि अकेले लड़ने की स्थिति भी बना सकती है।
क्या कर्नाटक और तेलंगाना मॉडल अपनाएगी कांग्रेस?
विशेषज्ञ मानते हैं कि कांग्रेस बिहार में कर्नाटक, केरल और तेलंगाना जैसे मॉडल की तर्ज पर रणनीति बना रही है, जहां मुस्लिम समुदाय की मजबूत पकड़ है। वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं, “मुस्लिम मतदाता अब ऐसे उम्मीदवार को चुनना चाहते हैं जो भाजपा को हराने में सक्षम हो – कांग्रेस इस मानसिकता को भुनाने की कोशिश कर रही है।”
ओवैसी और RJD के लिए खतरे की घंटी?
AIMIM के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण हो सकती है। अगर मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस की तरफ झुकता है, तो ओवैसी की पकड़ कमजोर हो सकती है। वहीं RJD के लिए भी यह संकेत है कि कांग्रेस अब सिर्फ सहयोगी नहीं, बल्कि संभावित प्रतिस्पर्धी भी बन सकती है।
कांग्रेस की अगली चाल क्या होगी?
फिलहाल कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा है, लेकिन उसकी कोशिश है कि वह अपनी सियासी जमीन को फिर से मजबूत करे। क्या वह भविष्य में अकेले चुनाव लड़ेगी या गठबंधन में रहकर दबदबा बनाएगी? इस सवाल का जवाब आने वाले महीनों की गतिविधियों में छिपा है।