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Hathras Stampede: हाथरस की हृदय विदारक घटना से न तो आयोजक बच सकते और न ही पुलिस व प्रशासन बच सकता

Hathras Stampede: भारतवर्ष परंपराओं, मान्यताओं और धार्मिक आस्था वाला देश है। यहां के लोग भाग्य और भगवान का सहारा मांगने बाबाओं के दरबार में हाजरी लगाते हैं। नए-नए महाराज, महंत, बाबाओं और स्वयंभू भगवानों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। जब देश के राजनीतिक पदों पर बैठे व्यक्ति, नौकरशाह और अति महत्वपूर्ण व्यक्ति इन बाबाओं के दरबार में हाजिरी लगाकर इनकी भक्ति, शक्ति तथा शोहरत का महिमामंडन करते हैं। यहां तक की देवात्मा बताते हैं तो फिर आप ऐसे बाबाओं और महाराजाओं को स्वयंभू भगवान कहने से कैसे रोक सकते हैं।

सत्संग में हुई हृदय विदारक दुर्घटना Hathras Stampede

राजनेता लोग इन बाबाओं की भीड़ का अपने पक्ष में वोट के रूप में प्रयोग करते हैं और बाबा लोग इन राजनेताओं की ताकत का प्रयोग अपनी फॉलोइंग बढ़ाने के लिए करते हैं।कल उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के पुलराई गांव में नारायण साकार हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग में हुई हृदय विदारक दुर्घटना में 121 से भी अधिक लोगों की जान चली गई और दर्जनों लोग घायल हुए हैं। प्रथम दृष्टा इस घटना के लिए आयोजकों को दोषी ठहराया जा सकता है। इस घटना की जांच के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पूर्व न्यायाधीश और पूर्व पुलिस अधिकारी की अध्यक्षता में एस आई टी का गठन किया है और अभी तक चार लोगों के खिलाफ मामला भी दर्ज किया है।

अंध भक्ति के खिलाफ सख्त कानून

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल लोकसभा में इस घटना का पता चलते ही घटना पर दुख जताया और पीड़ित परिवारों के प्रति सांतवना व्यक्त की। राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने अंध भक्ति के खिलाफ सख्त कानून बनाने की बात कही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी लोगों को आश्वस्त कर रहे हैं कि इस घटना के किसी भी दोषी व्यक्ति को किसी भी सूरत में बख्सा नहीं जाएगा। अंधभक्ति के खिलाफ अभी तक देश में कोई कानून नहीं है।

सरकार के पास ना तो कोई कानून है ना नियम है

देश में कुछ बाबाओं के आचरण को लेकर तमाम अपराधिक घटनाएं हम सब ने देखी हैं और अभी भी कई बाबा सलाखों के पीछे हैं। इसके बावजूद भी लगता है इन बाबाओं की इस अंधभक्ति का प्रचार प्रसार रोकने के लिए सरकार के पास ना तो कोई कानून है ना नियम है। जब जब भी सरकार किसी मुद्दे को लेकर स्वयं घिर जाती है तब तुरंत नया कानून लेकर आती है और मामले को शांत करने में लग जाती है लेकिन धार्मिक अनुष्ठानों, समागमों और धार्मिक यात्राओं में भगदड़ व दुर्घटनाओं से कितने लोग मरते हैं। सरकार व प्रशासन भी इन दुर्घटनाओं को जल्द ही भूल जाता है। जबकि इन दुर्घटनाओं से सबक लेकर सरकार को अंधभक्त के खिलाफ कठोर कानून बनाने चाहिए। केवल महाराष्ट्र और कर्नाटक सरकार द्वारा ही कानून बनाए गए हैं।

आयोजकों को समागम करने की अनुमति प्रदान

राष्ट्रीय स्तर पर या ज्यादातर राज्यों में कानून न होते हुए भी धार्मिक समागमों अनुष्ठानों व यात्राओं को व्यवस्थित करने के लिए प्रशासन और पुलिस के पास मानदंड व नियम हैं, जिनके आधार पर प्रशासन और पुलिस समागम के आयोजकों को समागम करने की अनुमति प्रदान करता है। आयोजकों द्वारा समागम या अनुष्ठान में आने वाली भीड़ का ब्योरा देना पड़ता है तभी पुलिस और प्रशासन के अधिकारी एक साइट प्लान तैयार कर आयोजकों को देते हैं और इस साइट प्लान के तहत आयोजकों को भी पुलिस और प्रशासन से मिलकर काम करना होता है।

समागमों की भीड़ को व्यवस्थित Hathras Stampede

इस प्रकार के समागमों की भीड़ को व्यवस्थित करने का जो भी खर्च होता है वह आयोजकों को वहन करना पड़ता है। यदि आयोजक इस प्लान के तहत भीड़ को मैनेज करने की व्यवस्था नहीं कर पाते तो पुलिस द्वारा अनुमति नहीं दी जा सकती। इसके साथ-साथ यदि अनुमान से ज्यादा भीड़ इकट्ठी हो तो पहले सीआईडी के लोग यह पता करते हैं की भीड़ कितनी इकट्ठी होगी। इतना बड़ा समागम या अनुष्ठान जहां लाखों की भीड़ इकट्ठी हो तो उसको व्यवस्थित करने में आयोजकों के साथ-साथ पुलिस व प्रशासन की जिम्मेवारी भी बढ़ जाती है। जब कभी भी राजनीतिक रेलियां या जनसभाएं होती हैं तो पुलिस प्रशासन द्वारा भीड़ को व्यवस्थित करने के लिए सभी तरह के मानदंड अपनाए जाते हैं और तभी रेलियां या जनसभाएं सफल हो पाते हैं लेकिन हाथरस के इस सत्संग समागम में कहां चूक रही है यह तो जांच में पता चल पाएगा। इस घटना की जिम्मेवारी से ना तो आयोजक बच सकते हैं और ना ही प्रशासन व पुलिस बच सकती।

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