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शिमला व राजपूतों को मंत्रीमंडल,कांगड़ा और ब्राह्मणों को कमंडल !

सुक्खू ने अपने मंत्रीमंडल में 7 मंत्रियों को किया शामिल, 6 मुख्य संसदीय सचिवों को भी दी शपथ

हिमाचल डेस्क- मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने 8 दिसम्बर 2022 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और एक महीने तक सभी सियासी, क्षेत्रीय, जातीय समीकरणों को समझने के बाद 8 जनवरी 2023 को अपने मंत्रीमंडल का विस्तार किया। मुख्यमंत्री सुक्खू ने अपने मंत्रीमंडल में 7 मंत्रियों को शामिल किया और सियासी ताप को शांत करने के लिए 6 मुख्य संसदीय सचिवों को भी शपथ दी। मंत्रीमंडल का विस्तार करते हुए मुख्यमंत्री ने 5 मंत्री व 3 मुख्य संसदीय सचिव शिमला संसदीय क्षेत्र के लिए और एक मंत्री व एक मुख्य संसदीय सचिव मंडी संसदीय क्षेत्र से मंत्रीमंडल में शामिल किए। कांगड़ा जिले से एक मंत्री व दो मुख्य संसदीय सचिवों को शपथ दिलवाई।

मुख्यमंत्री सुक्खू के मंत्रीमंडल विस्तार का सियासी सन्तुलन

मुख्य मंत्री सुखविन्द्र सिंह ठाकुर के मंत्रिमंडल विस्तार को सियासी तुला में जातीय, क्षेत्रीय और राजनिति के समीकरणों को रख कर तोलें तो संतुलन हर तरह से गिड़ा हुआ लगता है। मौजूदा विधानसभा में कांग्रेस के 40 विधायक हैं। इन 40 विधायकों को संसदीय क्षेत्रों में बांटे तो शिमला संसदीय क्षेत्र से13 विधायक है। मंडी से केवल पांच विधायक है। हमीरपुर संसदीय क्षेत्र, जो मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री का गृह क्षेत्र है, से 10 विधायक हैं और कांगड़ा से 12 विधायक कांग्रेस के चुन कर आए हैं।

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संसदीय चुनाव क्षेत्रों के हिसाब से देखें तो कांग्रेस को सत्ता में लाने की मुख्य भूमिका शिमला और कांगड़ा ने निभाई है। शिमला ने 13 विधायक और कांगड़ा ने 12 कांग्रेस विधायकों को चुना लेकिन सुक्खू के विस्तारित मंत्रीमंडल में शिमला संसदीय क्षेत्र से 5 मंत्री और 3 मुख्य संसदीय सचिवों को शपथ दिलवाई गई जबकि कांगड़ा जिले ने 12 कांग्रेस के विधायक चुन कर भेजे,जिस कांगड़ा के बारे में कहावत है कि शिमला के सिंहासन का रास्ता कांगड़ा से हो कर जाता है,

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कांगड़ा को एक विधानसभा अध्यक्ष, एक मंत्री और दो मुख्यसंसदीय सचिव मिले

कांगड़ा और शिमला संसदीय क्षेत्रों में कांग्रेस विधायकों की संख्या लगभग बराबर होने के बावजूद कांगडा को एक मंत्री और विधानसभा अध्यक्ष और दो मुख्य संसदीय सचिव जबकि शिमला को 5 मंत्री और 3 सीपीएस मिले, सियासी तुला पर यह जबरदस्त असंतुलन है।

जातीय समीकरणों के झरोख से मंत्रिमंडल विस्तार

अब इन मंत्रियों और सीपीएस को जातीय समीकरणों में बैठा कर देखते है यद्यपि ग्राम परिवेश जाति, धर्म, क्षेत्र या अन्य किसी वर्ग में बांट कर सियासत को नहीं देखता है परंतु दुर्भाग्य की बात है कि राजनीति की आहट इन्हीं पैरों से पहचानी जाती है। हिमाचल प्रदेश की चौदहवीं विधानसभा में कांग्रेस के 40 विधायकों में 15 राजपूत, 9 ब्राह्मण, 10 अनुसूचित जाति, 2 ओबीसी, 2 अनुसूचित जनजाति और 2 व्यापारी वर्ग से हैं। 15 राजपूत विधायकों में से मुख्यमंत्री को मिला कर 8 राजपूत मंत्री है जो संख्याबल में 50 प्रतिशत से ऊपर है। ओबीसी दो है दोनों में से एक मंत्री और एक सीपीएस है यानी 100 प्रतिशत समंजन है।

जातीय समीकरण भी ज्यादा असंतुलित

दो विधायक अनुसूचित जनजाति से है एक मंत्री है 50 प्रतिशत हिस्सा मिला। व्यापारी वर्ग को भी 50 प्रतिशत भाग मिल गया परंतु अनुसूचित जाति के 10 विधायकों में से एक मंत्री और दो मुख्य संसदीय सचिव इस वर्ग को मंत्रीमंडल में केवल 33 प्रतिशत हिस्सेदारी मिली है। विधानसभा में कांग्रेस के 9 ब्राह्मण विधायकों में से मात्र एक उपमुख्यमंत्री और एक संसदीय सचिव सुक्खू के मंत्रीमंडल में जगह बना पाए हैं। जातीय समीकरण भी बहुत ज्यादा असंतुलित है

मंत्रीमंडल का जल्द विस्तार होने की संभावनाएं

जातीय व क्षेत्रीय असंतुलन को देखते हुए सियासी पंडितों का मानना है कि सुक्खू अपने मंत्रीमंडल का पुन: विस्तार जल्द ही करेंगे। कांगड़ा जिला को नजरअंदाज करने के कारण वहां रोष फैलने लगा है ब्राह्मण और अनुसूचित जातियों में मंत्रीमंडल में समुचित भागीदारी न मिलने पर उपेक्षा करने की भावना घर करने लगी है। मंत्रीमंडल की शपथ के बाद मिले इन वर्गों के विधायक निराश और गुस्से में थे। वह अपने पर संयम बनाने का प्रयास तो कर रहे थे परंतु उनके आहत होने की सच्चाई स्पष्ट चेहरे और जुबान पर थी।

सियासी पोचर(अवैध शिकारी) की नजर इन विधायकों पर

आज का युग राजनीतिक पोचिंग का है।जब भी किसी सत्तारूढ़ दल के विधायकों को जब उचित हक न मिलने पर या अतिमहत्वकांक्षा के कारण सियासी बैचेनी होती है तो राजनीतिक पोचिंग के अवसर बन जाते है। देश में कई राज्यों की सरकारें दशकों से इन अवैध शिकारियों ने गिराई है। हाल के समय इसका चलन बहुत अधिक हो गया है। कई बार तो देखा गया कि शिकार खुद शिकारी के पास पहुंच गया और उसके संरक्षण में फलने फूलने लगा। मुख्यमंत्री सुखविन्द्र सिंह सुक्खू को इस बात का ध्यान रखना होगा और भेड़िये के आने से पहले मंत्रीमंडल को संतुलित कर लेना चाहिए।

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